Saturday, July 2, 2016

आजकल तकलीफ में भी मुस्कुरा लेता हूँ मैं...


आजकल तकलीफ में भी मुस्कुरा लेता हूँ मैं,
आधी मुसीबतों को तो यूँ ही हरा देता हूँ मैं।।


ज़िंदगी जब मायूस होती है, 
कम्बख़्त तभी महसूस होती है.!! 

कितना अजीब शख़्स है, पत्नी पे फ़िदा है,
उसपे भी गज़ब ये, कि अपनी पे फ़िदा है।।


यहाँ साज़िशों की बू है, माहौल में तनाव है,
अरे, हैरान क्यूँ हो भाई, मेरे शहर में चुनाव है।। 
क़ातिल मेरे धीरे-धीरे सब हो गए बरी,
चश्मदीद सी ज़िन्दगी बेबस, देखती रह गई।। 💗

तुम जानते क्या हो, क्या है मेरा हिंदुस्तान,
यहाँ हिन्दू में दिखता पैगम्बर और मुस्लिम में शंकर भगवान।।


हमनें समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना.।। 



अपनी ख्वाहिशों पे मुस्कुराहट का पैबंद लगाता हूँ,
ज़िंदगी बेज़ार है मियाँ, पर जिए जाता हूँ!!


तरक्की की हर रेखा तेरे बेटे को छू के जाती है,
पर माँ, परदेस में मुझे तेरी बहुत याद आती है।।

मत ढूँढ़ ए ग़ालिब, हमें दुनिया की तन्हाई में,
अपन यहीं दुबके हैं, अपनी रजाई में।। 


याद आने लगा एक ख़ास का बर्ताव मुझे,
टूट कर गिर पड़ा जब शाख़ से पत्ता कोई ।।


फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में, 

जैसे घर ख़रीदा हो क़िश्तों में..!!


वो रोज़ निकलती है किसी "सरकारी भर्ती" की तरह,
मैं बस देखता रह जाता हूँ, जनरल केटेगरी की तरह।!


रिमझिम बारिश में भीगे, कागज़ की नाव भी चलाई,
पर ज़िन्दगी कभी न मुस्कुराई, फिर बचपन की तरह।। 


तुम लगा ना पाओगे अन्दाज़ा मेरी बर्बादी का,
तुमने देखा ही कहाँ है मुझे, शाम होने के बाद।।


फ़िज़ा में घोल दी नफ़रतें, अहल-ए-सियासत ने,
गाँव के कुँए से पानी यहाँ, अभी मीठा निकलता है।। ‪#‎Dadri‬


जिस्म की दरारों से रूह दिखने लगी है,
बहुत अंदर तक तोड़ गया मुझे, तजुर्बा मेरा।। 


अपने फन में माहिर, मैंने दो ही देखे,
एक तो साँप, दूसरे आप।। 


बिछड़ के मुझसे, वो कितना अजीब लगता है,
मुझे वो मेरी ही तरह, बदनसीब लगता है..!!


सुबूतों की ज़रूरत जो पड़ने लगी है,
यकीनन, अब दूरियाँ बढ़ने लगी हैं।।


ना अनपढ़ रहे, ना ही क़ाबिल हुए,
ए इश्क़, हम खामखाँ तेरे स्कूल में दाख़िल हुए ।।


दास्ताँ-ए-बर्बादी सुनिए हमारी, बड़े मज़े की है,
ज़िन्दगी से कुछ यूँ खेले हम, जैसे दूजे की है।।


अब उसकी हर अदा से, छलकने लगा ख़ुलूस,
जब मुझको ऐतबार की, आदत नहीं रही।। 💗
(ख़ुलूस-सच्चाई)


रूह से हो प्यार तो दिल्लगी में भी सुकून मिलता है,
भटकते हैं वो लोग जिनकी चाहतें हज़ार होती है।। 


तुम भी हो ख़फ़ा, लोग भी हैं बेरहम दोस्तों,
अब हमें भी हो रहा है यक़ीन, के बुरे हैं हम दोस्तों


जाने उस शख़्स को ये कैसा हुनर आता है,
रात होते ही मेरी आँखों में उतर आता है।।


जिन्हें बुलँद करना था वन्दे मातरम्,
वो बन्दे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, पी के मात्र रम 


ना होना बेमुर्ऱवत, ना बेरूख़ी दिखाना..
बस सादगी से कहना, तुम बोझ बन गये हो.




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