Monday, May 22, 2023

धर्म उत्थान का मार्ग

सनातन परंपरा आदिकाल से चली रही है, इसके अनुयायी विश्व के सभी हिस्सों में अपनी परंपरा और संस्कारों का प्रभाव बिखेरते नजर आते हैं। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की मूल धारणा पर आधारित इस सर्व समावेशी हिंदू संस्कृति और परंपरा में सभी धर्म और संप्रदाय सुरक्षित महसूस करते हैं और परस्पर विकसित हुए है।

योजनाबद्ध तरीके से इस विकसित सभ्यता को मिटाने का प्रयास होता रहा है, अपने अनुसन्धानों, विमर्शो और प्रयासों से निरंतर विकसित हुई सनातन सभ्यता को योजनाबद्ध तरीके से कुचलने का प्रयास सदियों से होता आया है।

सदियों से ऋषि मुनियों के द्वारा किए गए विमर्शों और मानव जाति के उत्थान हेतु किए गए अनुसंधानों और ग्रंथों-लेखों और साहित्यों को ख़त्म करने के लिए तक्षशिला और नालंदा जैसे ज्ञान के भंडारों का नाश किया गया।  

सनातन सभ्यता की धार्मिक पहचानों को समाप्त करने का प्रयास किया गया, उनकी आस्था के केन्द्र मंदिरों और मठों को धवस्त करके उनके ऊपर दूसरे निर्माण किये गए। सनातन के प्रहरी धर्मगुरुओं और उनके परिवारों को यातनाएं दी गई, उनकी परिवार सहित सरेआम हत्याएं की गई, ताकि धर्म और आस्था कमज़ोर हो और सनातन का सम्पूर्ण विनाश हो सके। करोड़ों हिन्दुओं का संहार किया गया ।


पराधीनता के कालखंड में भारत का दोहन आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक तरीके से किया गया, मूल निवासियों का जीवन स्तर दयनीय था।सामाजिक समरसता को निशाना बनाने के लिए वर्ण व्यवस्था के अनुसार चलने वाले संगठित समाज को जातियों में विभाजित करके वैमनस्य फैलाया गया ।

भारत को पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनाए रखने के लिए शैक्षणिक व्यवस्था में बदलाव किया गया, एक ऐसी व्यवस्था तैयार की गई, जिससे कि तर्कों के आधार पर चलने वाले और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले समाज को अपराधबोध और हीनभावना से ग्रस्त किया गया।

संघर्षों और बलिदानों के बाद मिली स्वतंत्रता के उपरान्त देश हित और समाज हित राजनैतिक तुष्टिकरण की भेंट चढ़ गया। योजनाबद्ध तरीके से बहुसंखयक समाज के हितों का दमन किया गया। देश में एक विधान और संविधान होने के बावजूद विभिन्न धर्मो के लिए षड्यंत्र वश अलग-अलग नियम-कानून बनाए गए। हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता को ख़त्म किया गया, फलस्वरूप आज भारत में हिन्दू धर्म बहुसंखयक होने के बावजूद सघर्ष कर रहा है, मौकापरस्त ताकतें निर्धन हिन्दुओं को लालच देकर अपने धर्म और मज़हब में मतांतरण करवा रही है और असहाय हिन्दू समाज चाहकर भी उनकी मदद कर पाने में असमर्थ है।   


आज देश में एक विधान और संविधान होने के बावजूद बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। ईसाई और मुस्लिम समाज के धार्मिक स्थल स्वतंत्र हैं और हिन्दुओं के मंदिर और उनकी अकूत संपत्ति सरकार के अधीन हैं। 

प्राचीन काल में सभी हिन्दू मंदिरों के अपने सेवा प्रतिष्ठान होते थे जो कि दानकर्ताओं और उच्च वर्ग की सहायता से चलते थे, जहाँ निर्धन हिन्दुओं की भोजन, विद्यालय, उच्च-शिक्षा, स्वास्थ सेवाएं, सामाजिक केंद्र, कला केंद्र, आरामगृह,  गौशाला इत्यादि कई सुविधाएं उपलब्ध होती थी। 

ब्रिटिश राज के लिए अपने मतांतरण के मक़सद को पूरा करने के लिए मंदिरों के इन संगठनात्मक प्रयासों को विफल करना अत्यंत ज़रूरी था। जिससे उच्च हिन्दू वर्ग निर्धन हिन्दुओं का सहयोग न कर सके, इसलिए साजिश करते हुए मंदिरों और उनकी चल-अचल संपत्ति पर कब्ज़ा किया गया।

कल्पना कीजिए, भारत के लगभग हर शहर में इतने बड़े मंदिर मौजूद हैं जो निर्धन वर्ग के लिए मेडिकल कॉलेज और शिक्षण संस्थान चला सकते हैं। जहाँ हिंदू निर्धन वर्ग के मेधावी बच्चों को शिक्षा मिल सकती है, गरीब लोगों को इलाज़ मिल सकती है, वृद्धाश्रम और गौशालाएं चल सकती हैं।  

उदाहरण के तौर पर, भारत के तिरुमाला तिरुपति मंदिर के पास इतनी संपत्ति है कि कई शहरों का विकास हो जाए। मंदिर ने एक श्वेत पत्र जारी की है। इस पत्र में बताया गया है कि मंदिर के पास कितनी सारी संपत्तियां है। जिसमें विस्तार से बताया गया है कि कितना सोना और कैश जमा है। पत्र के मुताबिक, मंदिर की  कुल संपत्ति 2.26 लाख करोड़ आंकी है। वही मंदिर के पास 10.03 टन सोना जमा है। ये संपत्ति हिंदुओं के दान से एकत्र हुई है और निर्धन हिंदुओं के उत्थान में ही खर्च होनी चाहिए। ऐसे अनेकों मंदिर है जिसमे चढ़ाया जाने वाला हिंदुओं का पैसा अल्पसंख्यकों के नाम पर लूटा जा रहा है और वो ही अल्पसंख्यक हिंदुओं का मतांतरण करने में लगे हैं।


पर कानून के मुताबिक ये संपत्ति सरकार के कब्जे में है और आज़ादी के बाद भी हिन्दुओं के मंदिरों से धन सम्पत्ति की सरकारी लूट जारी है। जिसे रोककर हिंदू अपने निर्धन वर्ग के लोगों के हितों का पोषण कर सकते है, जिससे उनका मतांतरण रोका जा सकेगा और अन्य प्रकार से भी शोषण रोका जा सकेगा। 

अब हिन्दुओं का अपने समाज के धार्मिक हितों के लिए उठ खड़े होने का समय आ गया है। हर हिन्दू को ये मांग करनी होगी कि हमारे मंदिर सरकारी कब्ज़े से मुक्त हों और उनमें दिया जाने वाला दान और संपत्ति हिंदुओं के हितों के पोषण में प्रयोग हो।।

सादर 🙏🚩








Saturday, July 2, 2016

आजकल तकलीफ में भी मुस्कुरा लेता हूँ मैं...


आजकल तकलीफ में भी मुस्कुरा लेता हूँ मैं,
आधी मुसीबतों को तो यूँ ही हरा देता हूँ मैं।।


ज़िंदगी जब मायूस होती है, 
कम्बख़्त तभी महसूस होती है.!! 

कितना अजीब शख़्स है, पत्नी पे फ़िदा है,
उसपे भी गज़ब ये, कि अपनी पे फ़िदा है।।


यहाँ साज़िशों की बू है, माहौल में तनाव है,
अरे, हैरान क्यूँ हो भाई, मेरे शहर में चुनाव है।। 
क़ातिल मेरे धीरे-धीरे सब हो गए बरी,
चश्मदीद सी ज़िन्दगी बेबस, देखती रह गई।। 💗

तुम जानते क्या हो, क्या है मेरा हिंदुस्तान,
यहाँ हिन्दू में दिखता पैगम्बर और मुस्लिम में शंकर भगवान।।


हमनें समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना.।। 



अपनी ख्वाहिशों पे मुस्कुराहट का पैबंद लगाता हूँ,
ज़िंदगी बेज़ार है मियाँ, पर जिए जाता हूँ!!


तरक्की की हर रेखा तेरे बेटे को छू के जाती है,
पर माँ, परदेस में मुझे तेरी बहुत याद आती है।।

मत ढूँढ़ ए ग़ालिब, हमें दुनिया की तन्हाई में,
अपन यहीं दुबके हैं, अपनी रजाई में।। 


याद आने लगा एक ख़ास का बर्ताव मुझे,
टूट कर गिर पड़ा जब शाख़ से पत्ता कोई ।।


फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में, 

जैसे घर ख़रीदा हो क़िश्तों में..!!


वो रोज़ निकलती है किसी "सरकारी भर्ती" की तरह,
मैं बस देखता रह जाता हूँ, जनरल केटेगरी की तरह।!


रिमझिम बारिश में भीगे, कागज़ की नाव भी चलाई,
पर ज़िन्दगी कभी न मुस्कुराई, फिर बचपन की तरह।। 


तुम लगा ना पाओगे अन्दाज़ा मेरी बर्बादी का,
तुमने देखा ही कहाँ है मुझे, शाम होने के बाद।।


फ़िज़ा में घोल दी नफ़रतें, अहल-ए-सियासत ने,
गाँव के कुँए से पानी यहाँ, अभी मीठा निकलता है।। ‪#‎Dadri‬


जिस्म की दरारों से रूह दिखने लगी है,
बहुत अंदर तक तोड़ गया मुझे, तजुर्बा मेरा।। 


अपने फन में माहिर, मैंने दो ही देखे,
एक तो साँप, दूसरे आप।। 


बिछड़ के मुझसे, वो कितना अजीब लगता है,
मुझे वो मेरी ही तरह, बदनसीब लगता है..!!


सुबूतों की ज़रूरत जो पड़ने लगी है,
यकीनन, अब दूरियाँ बढ़ने लगी हैं।।


ना अनपढ़ रहे, ना ही क़ाबिल हुए,
ए इश्क़, हम खामखाँ तेरे स्कूल में दाख़िल हुए ।।


दास्ताँ-ए-बर्बादी सुनिए हमारी, बड़े मज़े की है,
ज़िन्दगी से कुछ यूँ खेले हम, जैसे दूजे की है।।


अब उसकी हर अदा से, छलकने लगा ख़ुलूस,
जब मुझको ऐतबार की, आदत नहीं रही।। 💗
(ख़ुलूस-सच्चाई)


रूह से हो प्यार तो दिल्लगी में भी सुकून मिलता है,
भटकते हैं वो लोग जिनकी चाहतें हज़ार होती है।। 


तुम भी हो ख़फ़ा, लोग भी हैं बेरहम दोस्तों,
अब हमें भी हो रहा है यक़ीन, के बुरे हैं हम दोस्तों


जाने उस शख़्स को ये कैसा हुनर आता है,
रात होते ही मेरी आँखों में उतर आता है।।


जिन्हें बुलँद करना था वन्दे मातरम्,
वो बन्दे ज़िंदगी गुज़ार रहे हैं, पी के मात्र रम 


ना होना बेमुर्ऱवत, ना बेरूख़ी दिखाना..
बस सादगी से कहना, तुम बोझ बन गये हो.




सप्रेम



Saturday, October 23, 2010

मेरे ख़ामोश जज़्बात

खामोशियाँ झगड़ती है हम दोनो के दरमियाँ,

कर नही सकता अपना दर्द मैं बयाँ,

दिल की हालत आज कुछ अजीब सी है,

सिसकियाँ ले रहा है दिल... और होठों पे हँसी सी है ..!!







ज़ख़्म सी हो गयी है ज़िंदगी मेरी,

दर्द भी सिसकता है ज़रा खुशी पाकर,

वफ़ा की उम्मीद मैं करता किस से,

मेरा ही रहनुमा था कातिल मेरा ..!!






कितनी बदल गयी हो, तुम हालात की तरह,

अब जब भी मिलती हो, पहली मुलाकात की तरह,

मैं क्या अपने प्यार का सदका उतारता,

मुझे तुम्हारा प्यार भी मिला, तो खैरात की तरह ..!!






खामोशियों से लड़ते हुए ज़िंदगी में,

तन्हाइयों ने संभाला है मुझे,

मुद्दतों से थी जिस मंज़िल की तलाश,

आज उसी के रास्तों ने पुकारा है मुझे,

समेट रहा हूँ अपने होश-ओ-हवास,

लपेट तो लूँ अपने जज़्बातो को मैं,

इस दुनिया से उम्मीद करना है बेकार, कुछ पाना है मुश्किल,

साथ में ले तो लूँ, अपना साज़-ओ-सामान, अपना कफ़न तो मैं..!!






सोचता था मैं कि, ज़िंदगी बड़ी हसीन होगी,

मुझे क्या पता था कि मेरे प्यार की मौत इतनी संगीन होगी,

आज भी फिरता हू अपने प्यार की लाश को लेकर,

शायद अब इस लाश से ही मेरी रातें रंगीन होंगी..!!






पानी पर मैने भी आशियाँ बनाए है,

राहें मोहब्बत में क्या खूब धोखे मैनें खाए हैं,

जिसकी एक मुस्कुराहट पर मैनें लहू बहाए हैं,

वो ही मेरी मैयत पर आज हँसने आए हैं।





जिस पर ऐतबार मैं किया करता था,

जिस की उदासी में आँखें नम किया करता था,

उसे कबूल ना हुई मेरी खुशी इस कदर,

मुझे तन्हा छोड़ दिया, अनजाना बताकर ..!!






सहम जाता हूँ उन हसीन शामों को याद करके,

कुछ भी ना मिला मुझे, खुदा से फरियाद करके,

अब तो दर्द का भी नही होता, एहसास कभी,

जैसे साहिल की नही बुझती प्यास कभी..!!






अनजाना सा ताकता था मुझे मेरा ही साया,

थोड़ा ठहर कर सोचा कि, क्या खोया और क्या पाया,

झूठे साथी, नकली दोस्त, फरेबी रिश्ते,

ज़िंदगी के इस मोड़ पे, अपनी रूह तक को घायल पाया..!!





जिस बेटी को बोझ समझा उम्र भर मैनें,

आज का इस बूढ़े का बोझ उसी के कांधों पर है..!!






मेरी बर्बादी पर मत जाना तुम,

मैने शिकस्त खाकर फ़तेह पाई है..!!





वो  ज़िंदगी  के  थपेड़े  खा  के  फट  चुकी  मेरे  ख्वाबों  की  चादर,

उसे  अपने  बचे  हुए  हौंसले  से  सीते  हैं,

कौन  कहता  है  हमें  खुशी  नही  मयस्सर.?

चलो  आज  पैमाने  में  थोड़ा  सा  ग़म  पीते  हैं..!!






तेरी  रहमतो  में  ना  रही  होगी  कमी...... ए  खुदा,

मुझे  तो  मेरी  ही  दुआओं  पे  शक़  है..!!




"तमाम उम्र का रिश्ता निभाने वाला...

बड़े नसीब से मिलता है चाहने वाला.."







प्यार था वो या एक फरेब था...


उन्हे मेरी मोहबत से ही गुरेज़ था..!!






Wednesday, May 6, 2009

ये किस ओर जा रहा हू मैं...

ये किस ओर जा रहा हू मैं...
भीड़ के इस जंगल में अपने जज़्बातों को संभाले,
अपनी यादों को लपेटता, अपने आँसुओ को समेटता,
ये किस ओर जा रहा हू मैं...

उड़ाकर इन प्रतिकूल परिस्थितियों का उपहास,
कराने दुनिया को अपने अस्तित्व का आभास,
लगाकर अपना सर्वस्व दाँव पर,
ये किस ओर जा रहा हू मैं...

रूठती अपनी हठ(ज़िद)को मनाता,
निचुड़ते संयम को सहलाता,
रोज़ रोज़ अपने-आप को ही मनाता,
ये किस ओर जा रहा हू मैं...
ना कोई दोस्त ना कोई दुश्मन,
अपने आप से ही जूझता मेरा अंतर्मन,
अपनी ही खुशियों का करके गबन,
ये किस ओर जा रहा हू मैं...

अपनी ही हँसी से खुद को रुलाता,
मैं बनकर विदूषक, दुनिया को हंसाता,
इन अपनो की भीड़ में अकेलेपन को झेलता,
ये किस ओर जा रहा हू मैं...