योजनाबद्ध तरीके से इस विकसित सभ्यता को मिटाने का प्रयास होता रहा है, अपने अनुसन्धानों, विमर्शो और प्रयासों से निरंतर विकसित हुई सनातन सभ्यता को योजनाबद्ध तरीके से कुचलने का प्रयास सदियों से होता आया है।
सदियों से ऋषि मुनियों के द्वारा किए गए विमर्शों और मानव जाति के उत्थान हेतु किए गए अनुसंधानों और ग्रंथों-लेखों और साहित्यों को ख़त्म करने के लिए तक्षशिला और नालंदा जैसे ज्ञान के भंडारों का नाश किया गया।
सनातन सभ्यता की धार्मिक पहचानों को समाप्त करने का प्रयास किया गया, उनकी आस्था के केन्द्र मंदिरों और मठों को धवस्त करके उनके ऊपर दूसरे निर्माण किये गए। सनातन के प्रहरी धर्मगुरुओं और उनके परिवारों को यातनाएं दी गई, उनकी परिवार सहित सरेआम हत्याएं की गई, ताकि धर्म और आस्था कमज़ोर हो और सनातन का सम्पूर्ण विनाश हो सके। करोड़ों हिन्दुओं का संहार किया गया ।
पराधीनता के कालखंड में भारत का दोहन आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक तरीके से किया गया, मूल निवासियों का जीवन स्तर दयनीय था।सामाजिक समरसता को निशाना बनाने के लिए वर्ण व्यवस्था के अनुसार चलने वाले संगठित समाज को जातियों में विभाजित करके वैमनस्य फैलाया गया ।
भारत को पीढ़ी दर पीढ़ी गुलाम बनाए रखने के लिए शैक्षणिक व्यवस्था में बदलाव किया गया, एक ऐसी व्यवस्था तैयार की गई, जिससे कि तर्कों के आधार पर चलने वाले और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखने वाले समाज को अपराधबोध और हीनभावना से ग्रस्त किया गया।
संघर्षों और बलिदानों के बाद मिली स्वतंत्रता के उपरान्त देश हित और समाज हित राजनैतिक तुष्टिकरण की भेंट चढ़ गया। योजनाबद्ध तरीके से बहुसंखयक समाज के हितों का दमन किया गया। देश में एक विधान और संविधान होने के बावजूद विभिन्न धर्मो के लिए षड्यंत्र वश अलग-अलग नियम-कानून बनाए गए। हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता को ख़त्म किया गया, फलस्वरूप आज भारत में हिन्दू धर्म बहुसंखयक होने के बावजूद सघर्ष कर रहा है, मौकापरस्त ताकतें निर्धन हिन्दुओं को लालच देकर अपने धर्म और मज़हब में मतांतरण करवा रही है और असहाय हिन्दू समाज चाहकर भी उनकी मदद कर पाने में असमर्थ है।
आज देश में एक विधान और संविधान होने के बावजूद बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। ईसाई और मुस्लिम समाज के धार्मिक स्थल स्वतंत्र हैं और हिन्दुओं के मंदिर और उनकी अकूत संपत्ति सरकार के अधीन हैं।
प्राचीन काल में सभी हिन्दू मंदिरों के अपने सेवा प्रतिष्ठान होते थे जो कि दानकर्ताओं और उच्च वर्ग की सहायता से चलते थे, जहाँ निर्धन हिन्दुओं की भोजन, विद्यालय, उच्च-शिक्षा, स्वास्थ सेवाएं, सामाजिक केंद्र, कला केंद्र, आरामगृह, गौशाला इत्यादि कई सुविधाएं उपलब्ध होती थी।
ब्रिटिश राज के लिए अपने मतांतरण के मक़सद को पूरा करने के लिए मंदिरों के इन संगठनात्मक प्रयासों को विफल करना अत्यंत ज़रूरी था। जिससे उच्च हिन्दू वर्ग निर्धन हिन्दुओं का सहयोग न कर सके, इसलिए साजिश करते हुए मंदिरों और उनकी चल-अचल संपत्ति पर कब्ज़ा किया गया।
कल्पना कीजिए, भारत के लगभग हर शहर में इतने बड़े मंदिर मौजूद हैं जो निर्धन वर्ग के लिए मेडिकल कॉलेज और शिक्षण संस्थान चला सकते हैं। जहाँ हिंदू निर्धन वर्ग के मेधावी बच्चों को शिक्षा मिल सकती है, गरीब लोगों को इलाज़ मिल सकती है, वृद्धाश्रम और गौशालाएं चल सकती हैं।
उदाहरण के तौर पर, भारत के तिरुमाला तिरुपति मंदिर के पास इतनी संपत्ति है कि कई शहरों का विकास हो जाए। मंदिर ने एक श्वेत पत्र जारी की है। इस पत्र में बताया गया है कि मंदिर के पास कितनी सारी संपत्तियां है। जिसमें विस्तार से बताया गया है कि कितना सोना और कैश जमा है। पत्र के मुताबिक, मंदिर की कुल संपत्ति 2.26 लाख करोड़ आंकी है। वही मंदिर के पास 10.03 टन सोना जमा है। ये संपत्ति हिंदुओं के दान से एकत्र हुई है और निर्धन हिंदुओं के उत्थान में ही खर्च होनी चाहिए। ऐसे अनेकों मंदिर है जिसमे चढ़ाया जाने वाला हिंदुओं का पैसा अल्पसंख्यकों के नाम पर लूटा जा रहा है और वो ही अल्पसंख्यक हिंदुओं का मतांतरण करने में लगे हैं।
पर कानून के मुताबिक ये संपत्ति सरकार के कब्जे में है और आज़ादी के बाद भी हिन्दुओं के मंदिरों से धन सम्पत्ति की सरकारी लूट जारी है। जिसे रोककर हिंदू अपने निर्धन वर्ग के लोगों के हितों का पोषण कर सकते है, जिससे उनका मतांतरण रोका जा सकेगा और अन्य प्रकार से भी शोषण रोका जा सकेगा।
अब हिन्दुओं का अपने समाज के धार्मिक हितों के लिए उठ खड़े होने का समय आ गया है। हर हिन्दू को ये मांग करनी होगी कि हमारे मंदिर सरकारी कब्ज़े से मुक्त हों और उनमें दिया जाने वाला दान और संपत्ति हिंदुओं के हितों के पोषण में प्रयोग हो।।
सादर 🙏🚩